धारी देवी का मंदिर श्रीनगर और रुद्रप्रयाग के बीच गढ़वाल क्षेत्र में स्थित है। मां धारी देवी को मां काली का ही रूप माना जाता है। माँ धारी देवी को उत्तराखंड के चार धामों का रक्षक भी माना जाता हैं। यह स्थान न केवल धार्मिक बल्कि प्राकृतिक सौंदर्य और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के कारण भी विशेष महत्व रखता है।
धारी देवी का मंदिर का इतिहास :-
धारी देवी का मंदिर कई मान्यताओं और कहानियों को समेटे हुए हैं। माँ धारी देवी उत्तराखंड के चारों धामों की रक्षा करती हैं। धारी देवी का मंदिर में स्थापित मूर्ति अधूरी है ; दरअसल यहाँ माता का ऊपरी आधा शरीर विराजमान है और बाकी निचला आधा शरीर गुप्तकाशी के समीप कालीमठ में स्थित है जहां माता को कालिका के रूप में पूजा जाता है। इस मंदिर से एक रोचक कथा जुड़ी है। यहां माता धारी देवी की मूर्ति सुबह में एक छोटी बच्ची के समान, दोपहर में एक व्यस्क महिला के समान और शाम आते-आते एक वृद्ध महिला के समान प्रतीत होती है। यह माता धारी देवी का चमत्कारी रूप है।
धारी देवी का मंदिर : केदारनाथ बाढ़ 2013 का कनेक्शन :-
धारी देवी का मंदिर पहले अलकनंदा के मध्य में नहीं बल्कि अलकनंदा के तट पर एक पहाड़ पर स्थित था। अलकनंदा नदी पर एक डैम का निर्माण होना था और वहीं पर मंदिर भी था। इस डैम निर्माण के लिए पहाड़ को काटकर मंदिर को उसके मूल स्थल से 15 जून 2013 को हटाया गया और उसके अगले ही दिन केदारनाथ में भीषण आपदा आई थी जो उस सदी कि सबसे बड़ी आपदा थी। माता धारी देवी का क्रोध संसार पर केदारनाथ के आपदा रूप में टूटा। बाद में यह निश्चित किया गया कि मां धारी देवी की मूर्ति जिस शिलाखंड पर है उस पूरे शिलाखंड को ही नए मंदिर में माता धारी देवी के मूल निवास पर उसी स्थान पर स्थापित किया जाएगा। जनवरी 2023 को माता धारी देवी को उनके मूल निवास पर स्थापित कर दिया गया।
धार्मिक महत्व :-
धारी देवी का मंदिर हिंदू धर्म में विशेष स्थान रखता है। यह मंदिर सालों पर खुला रहता है। नवरात्रि के समय यहां भक्तों की भारी भीड़ रहती है; दूर-दूर से भक्त आकर माँ धारी देवी का दर्शन करते हैं और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। मान्यता है कि बिना माँ धारी देवी के दर्शन के आपके चार धाम की यात्रा पूर्ण नहीं मानी जाती हैं। इस वजह से भी इस मंदिर का धार्मिक महत्व बढ़ जाता है।
कब और कैसे आयें मां धारी देवी का मंदिर :-
यहां आने के लिए सबसे उचित समय अप्रैल से जून तथा सितंबर से नवंबर तक माना जाता है हालांकि मंदिर सालो भर खुला रहता है। मां धारी देवी का मंदिर तक पहुंचाने के लिए कई साधन उपलब्ध है।
- सड़क:- रुद्रप्रयाग से यहां तक आने के लिए बस या टैक्सी उपलब्ध है।
- निकटतम रेलवे स्टेशन:- ऋषिकेश रेलवे स्टेशन, जहां से मां धारी देवी का मंदिर 118 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
- हवाई मार्ग :- जॉली ग्रांट एयरपोर्ट, देहरादून इस मंदिर तक पहुंचने के लिए सबसे निकटतम हवाई अड्डा है।
धारी देवी का मंदिर उत्तराखंड का एक विशेष धार्मिक स्थल है जो अपनी प्राकृतिक सौंदर्य और धार्मिक महत्व के कारण लोगों को बहुत आकर्षित करता है तो अगर आप उत्तराखंड की यात्रा पर हैं तो मां धारी देवी का मंदिर अवश्य आएं और माता का आशीर्वाद प्राप्त करें।
कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां :-
धारी देवी मंदिर में कौन-कौन से धार्मिक अनुष्ठान होते हैं?
मंदिर में प्रतिदिन पूजा-अर्चना की जाती है और विशेष अवसरों पर बड़े पैमाने पर धार्मिक अनुष्ठान होते हैं। नवरात्रि और अन्य त्योहारों पर यहाँ भारी भीड़ होती है।
मंदिर में ठहरने की व्यवस्था कैसी है?
मंदिर के आसपास कई धर्मशालाएं और छोटे होटल उपलब्ध हैं। रुद्रप्रयाग में भी ठहरने के लिए उचित व्यवस्था है।
मंदिर के स्थान परिवर्तन के बाद क्या बदलाव हुए?
2013 की बाढ़ के बाद मंदिर को पुनः अपने मूल स्थान पर स्थापित किया गया। इसके बाद से स्थानीय लोग और भक्त यहाँ आने में अधिक श्रद्धा और विश्वास दिखाते हैं।
धारी देवी मंदिर के आसपास खरीदारी के क्या विकल्प हैं?
मंदिर के पास कई छोटी दुकानें हैं जहां धार्मिक सामग्री, प्रसाद और स्थानीय हस्तशिल्प खरीदे जा सकते हैं।
क्या धारी देवी मंदिर में फोटोग्राफी की अनुमति है?
मंदिर परिसर में फोटोग्राफी की अनुमति है, लेकिन गर्भगृह के अंदर फोटोग्राफी प्रतिबंधित है।