देव दीपावली सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि आस्था, परंपरा और प्रकाश का अद्भुत संगम है। हर साल कार्तिक पूर्णिमा को मनाई जाने वाली यह दिव्य दीपावली, भगवान शिव की त्रिपुरासुर पर विजय और देवताओं के पृथ्वी पर आगमन का प्रतीक है। यह काशी के घाटों पर हज़ारों दीयों की जगमगाहट से न सिर्फ वाराणसी को अलौकिक बना देती है, बल्कि पूरे भारत में आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार करती है। आइए, विस्तार से जानते हैं कि देव दीपावली क्यों मनाई जाती है, इसका क्या महत्व है और इसके पीछे का गौरवशाली इतिहास क्या है।
देव दीपावली क्या है? (What is Dev Deepawali?)
देव दीपावली कार्तिक मास की पूर्णिमा को मनाई जाने वाली एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है। यह दीपावली के ठीक 15 दिन बाद आती है। इसे “देवताओं की दीपावली” के रूप में जाना जाता है, क्योंकि पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन देवतागण पृथ्वी पर आकर दीपावली मनाते हैं। विशेषकर, यह त्योहार भगवान शिव से जुड़ा हुआ है, जिन्होंने इसी दिन त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था।
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देव दीपावली का पौराणिक महत्व और इतिहास (Mythological Significance and History of Dev Deepawali)
देव दीपावली के पीछे कई पौराणिक कथाएँ और मान्यताएँ हैं, जो इसे अत्यंत विशेष बनाती हैं:
1. त्रिपुरासुर वध और देवताओं का आनंद
सबसे प्रमुख कथा भगवान शिव द्वारा त्रिपुरासुर नामक शक्तिशाली राक्षस के वध से संबंधित है। त्रिपुरासुर ने ब्रह्मा से वरदान पाकर तीन अजेय नगरों (त्रिपुर) का निर्माण किया था और तीनों लोकों में हाहाकार मचा रखा था। देवताओं और मनुष्यों को आतंकित करने वाले इस राक्षस का वध भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन किया था। इस विजय से प्रसन्न होकर समस्त देवताओं ने स्वर्गलोक में और पृथ्वी पर दीपक जलाकर खुशियाँ मनाई थीं। तभी से इस दिन को देव दीपावली के रूप में मनाया जाने लगा। शिव की इस विजय को “त्रिपुरारी पूर्णिमा” के नाम से भी जाना जाता है।
2. मत्स्य अवतार का प्राकट्य
एक अन्य मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु ने इसी दिन मत्स्य अवतार धारण किया था। यह अवतार उन्होंने पृथ्वी को प्रलय से बचाने और वेदों की रक्षा करने के लिए लिया था। इसलिए भी इस दिन को पवित्र माना जाता है और भगवान विष्णु के भक्त भी इस दिन को विशेष रूप से मनाते हैं।
3. तुलसी विवाह का समापन
कई क्षेत्रों में कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही तुलसी विवाह का समापन भी होता है। देवउठनी एकादशी से शुरू होने वाला यह विवाह अनुष्ठान इस दिन पूर्ण होता है। तुलसी को भगवान विष्णु की प्रिया माना जाता है, और उनके विवाह के समापन पर भी दीपक जलाए जाते हैं।
4. गुरु नानक देव जी की जयंती
सिख धर्म में भी कार्तिक पूर्णिमा का विशेष महत्व है क्योंकि इस दिन सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी का प्रकाश पर्व मनाया जाता है। देशभर में गुरुद्वारों में विशेष प्रार्थनाएँ और लंगर का आयोजन होता है।

देव दीपावली का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व (Spiritual and Cultural Significance of Dev Deepawali)
देव दीपावली सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि इसका गहरा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी है:
अज्ञान पर ज्ञान की विजय: यह त्योहार अंधकार पर प्रकाश और अज्ञान पर ज्ञान की विजय का प्रतीक है। जिस प्रकार त्रिपुरासुर रूपी अंधकार का नाश हुआ, उसी प्रकार दीपों की रोशनी हमें आध्यात्मिक ज्ञान की ओर बढ़ने की प्रेरणा देती है।
नकारात्मकता का नाश: दीपों की कतारें सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती हैं और नकारात्मक शक्तियों को दूर करती हैं। यह घर-परिवार में सुख-समृद्धि लाती है।
गंगा स्नान का पुण्य: कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा जैसे पवित्र नदियों में स्नान करना अत्यंत शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इससे सभी पाप धुल जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
दीपदान की परंपरा: इस दिन मंदिरों, घरों और नदियों के घाटों पर दीपदान करने का विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि दीपदान करने से देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है और पितरों को भी शांति मिलती है।
देव दीपावली कैसे मनाई जाती है? (How is Dev Deepawali Celebrated?)
देव दीपावली का उत्सव पूरे भारत में मनाया जाता है, लेकिन इसका सबसे भव्य और मनमोहक रूप वाराणसी (काशी) में देखने को मिलता है।
1. वाराणसी में देव दीपावली का भव्य आयोजन
वाराणसी में देव दीपावली का नजारा अद्भुत और अलौकिक होता है। गंगा नदी के सभी घाट लाखों दीयों की रोशनी से जगमगा उठते हैं, जिससे पूरा शहर एक दिव्य प्रकाश से भर जाता है।
दीपों की रोशनी: दशाश्वमेध घाट, अस्सी घाट और अन्य सभी घाटों पर लाखों छोटे-छोटे दीपक जलाए जाते हैं। यह दृश्य ऐसा लगता है जैसे आकाश के तारे ज़मीन पर उतर आए हों।
गंगा आरती: इस दिन गंगा आरती का विशेष महत्व होता है। शाम ढलते ही गंगा घाट पर होने वाली भव्य आरती में हज़ारों श्रद्धालु शामिल होते हैं। मंत्रोच्चार, शंखनाद और दीपों की रोशनी से वातावरण पूरी तरह भक्तिमय हो जाता है।
झांकियाँ और शोभायात्राएँ: कई स्थानों पर देवताओं की झांकियाँ और शोभायात्राएँ निकाली जाती हैं।
आतिशबाजी: देर रात तक आतिशबाजी का प्रदर्शन होता है, जो आसमान को रंगीन रोशनी से भर देता है।
सांस्कृतिक कार्यक्रम: विभिन्न घाटों और मंदिरों में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जिसमें भजन-कीर्तन, शास्त्रीय संगीत और नृत्य शामिल होते हैं।
2. अन्य स्थानों पर देव दीपावली
देश के अन्य हिस्सों में भी लोग इस दिन अपने घरों, मंदिरों और पवित्र नदियों के किनारे दीपक जलाते हैं। घरों को सजाया जाता है और विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन सत्यनारायण भगवान की कथा सुनना और दान-पुण्य करना भी शुभ माना जाता है।
देव दीपावली पर पूजा विधि (Dev Deepawali Puja Vidhi)
देव दीपावली पर निम्नलिखित विधि से पूजा की जा सकती है:
पवित्र स्नान: सुबह जल्दी उठकर किसी पवित्र नदी (विशेषकर गंगा) में स्नान करें। यदि संभव न हो तो घर पर ही जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करें।
सूर्य को अर्घ्य: स्नान के बाद सूर्य देव को जल अर्पित करें।
संकल्प: स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूजा का संकल्प लें।
देवताओं की पूजा: भगवान शिव, भगवान विष्णु, देवी लक्ष्मी और अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमा स्थापित करें।
दीपक प्रज्ज्वलित करें: मिट्टी के दीपक तैयार करें और उनमें घी या तेल डालकर जलाएँ। मंदिर में, घर के आँगन में, बालकनी में और नदी किनारे (यदि संभव हो) दीपक प्रज्ज्वलित करें।
आरती और मंत्र: देवताओं की आरती करें और उनसे प्रार्थना करें। “ॐ नमः शिवाय” और “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” जैसे मंत्रों का जाप करें।
भोग लगाएं: देवताओं को मिठाई, फल आदि का भोग लगाएं।
दीपदान: सूर्यास्त के बाद नदी में दीपदान करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
दान-पुण्य: इस दिन गरीबों और ज़रूरतमंदों को अन्न, वस्त्र और धन का दान करें।
देव दीपावली 2025: शुभ मुहूर्त (Dev Deepawali 2025: Auspicious Time)
देव दीपावली कार्तिक पूर्णिमा को मनाई जाती है। 2025 में कार्तिक पूर्णिमा की तिथि और शुभ मुहूर्त इस प्रकार हैं:
देव दीपावली तिथि: बुधवार, 5 नवंबर 2025
पूर्णिमा तिथि आरंभ: 4 नवंबर 2025, रात 10:36 बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त: 5 नवंबर 2025, शाम 06:48 बजे
प्रदोषकाल देव दीपावली मुहूर्त: शाम 05:15 बजे से शाम 07:50 बजे तक (अवधि: 02 घंटे 35 मिनट)
निष्कर्ष: प्रकाश का पर्व देव दीपावली
देव दीपावली सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि हमारी समृद्ध संस्कृति, पौराणिक कथाओं और आध्यात्मिक मान्यताओं का प्रतिबिंब है। यह हमें अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ने, नकारात्मकता को दूर करने और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करने की प्रेरणा देता है। विशेषकर वाराणसी में इसका भव्य आयोजन एक ऐसा अनुभव है जिसे हर किसी को जीवन में एक बार ज़रूर देखना चाहिए। यह पर्व हमें प्रकृति, जल और प्रकाश के महत्व को समझने का अवसर देता है, साथ ही हमें यह भी सिखाता है कि बुराई पर अच्छाई की जीत हमेशा होती है।
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