छठ पूजा सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि आस्था, आत्मशुद्धि और प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का एक महान पर्व है। यह महापर्व मुख्य रूप से सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित है, जो बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के पूर्वी हिस्सों में विशेष धूमधाम से मनाया जाता है, और अब तो यह पूरे विश्व में फैले भारतीयों द्वारा श्रद्धापूर्वक मनाया जाने लगा है। आइए, इस लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा के महत्व, इसकी विधि, इससे जुड़ी पौराणिक कथाओं और हर पहलू पर विस्तार से प्रकाश डालते हैं।
छठ पूजा क्या है? (What is Chhath Puja?)
छठ पूजा एक प्राचीन हिंदू त्योहार है जो सूर्य देव, उनकी पत्नी उषा और प्रकृति की शक्ति छठी मैया (देवी षष्ठी) की आराधना के लिए समर्पित है। यह पर्व कठोर तपस्या और शुद्धता का प्रतीक है, जिसमें व्रती (व्रत रखने वाले) लगातार 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखते हैं। यह पर्व मुख्य रूप से मनोकामना पूर्ति, संतान सुख, परिवार के स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए मनाया जाता है।
छठ पूजा का महत्व: क्यों और कैसे मनाई जाती है?
छठ पूजा का महत्व बहुआयामी है, जिसमें धार्मिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक पहलू शामिल हैं:
धार्मिक महत्व: यह पर्व सीधे सूर्य देव की उपासना से जुड़ा है, जिन्हें प्रत्यक्ष देवता माना जाता है। सूर्य समस्त जीव जगत को ऊर्जा प्रदान करते हैं। छठी मैया को संतान की देवी माना जाता है, और उनकी पूजा से संतान सुख तथा उनकी दीर्घायु की कामना की जाती है। इस पर्व के दौरान पवित्रता और तपस्या पर अत्यधिक जोर दिया जाता है, जिससे व्रती आत्मिक शांति और शुद्धता प्राप्त करते हैं।
वैज्ञानिक महत्व: छठ पूजा का वैज्ञानिक आधार भी है। कार्तिक मास में सूर्य की पराबैंगनी किरणें (UV rays) पृथ्वी पर अधिक मात्रा में आती हैं। इस दौरान नदी या तालाब के जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देने से शरीर को विटामिन डी प्राप्त होता है और रोगों से लड़ने की शक्ति मिलती है। यह शरीर और मन को ऊर्जावान बनाने का एक प्राकृतिक तरीका है।
सांस्कृतिक महत्व: यह पर्व सामाजिक एकता और सद्भाव का प्रतीक है। लोग मिलकर घाटों की सफाई करते हैं, प्रसाद तैयार करते हैं और एक-दूसरे की मदद करते हैं। यह एक ऐसा महापर्व है जहां कोई अमीर-गरीब का भेद नहीं होता, सब एक ही घाट पर एक समान श्रद्धा के साथ पूजा करते हैं।
संतान प्राप्ति के लिए छठ पूजा का व्रत: यह मान्यता है कि जो दंपत्ति निःसंतान हैं, वे यदि श्रद्धापूर्वक छठ का व्रत करते हैं, तो उन्हें संतान सुख की प्राप्ति होती है। संतान की कुशलता और लंबी आयु के लिए भी माताएं यह कठोर व्रत रखती हैं।
छठ महापर्व का गौरवशाली इतिहास और पौराणिक कथाएं
छठ पूजा से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं हैं जो इसके महत्व को और बढ़ाती हैं:
राजा प्रियंवद और छठी मैया की कथा: सबसे प्रचलित कथा के अनुसार, राजा प्रियंवद और उनकी पत्नी मालिनी को कोई संतान नहीं थी। महर्षि कश्यप ने उन्हें पुत्रेष्टि यज्ञ करने और देवी षष्ठी (छठी मैया) की पूजा करने का सुझाव दिया। यज्ञ के प्रभाव से पुत्र हुआ, लेकिन वह मृत पैदा हुआ। जब राजा विलाप कर रहे थे, तभी आकाश से एक देवी प्रकट हुईं, जिन्होंने स्वयं को षष्ठी देवी बताया। उन्होंने मृत शिशु को स्पर्श किया और वह जीवित हो गया। देवी ने कहा कि जो कोई कार्तिक मास की षष्ठी को मेरी पूजा करेगा, उसे संतान सुख अवश्य मिलेगा। तभी से यह पूजा की जाने लगी।
महाभारत काल से संबंध:
सूर्य पुत्र कर्ण: मान्यता है कि सूर्य पुत्र कर्ण प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही पद्धति प्रचलित है।
द्रौपदी का व्रत: जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने श्रीकृष्ण के कहने पर सूर्य देव और छठी मैया का व्रत रखा। इस व्रत के प्रभाव से पांडवों को उनका राजपाट वापस मिल गया।
भगवान राम और सीता का अयोध्या लौटना: कुछ मान्यताओं के अनुसार, भगवान राम और सीता लंका विजय के बाद जब अयोध्या लौटे, तब उन्होंने रावण वध के पाप से मुक्ति पाने के लिए सूर्य देव की पूजा की। सीता माता ने मुंगेर में सूर्य उपासना की, जिससे इस पर्व की शुरुआत हुई।
छठ पूजा की चार दिवसीय संपूर्ण विधि और नियम
छठ पूजा का व्रत चार दिनों तक चलता है, जिसमें अत्यंत कठोर नियमों और शुद्धता का पालन किया जाता है:
पहला दिन: नहाय-खाय
यह छठ महापर्व का पहला दिन होता है। इस दिन व्रती पवित्र नदी (जैसे गंगा) या तालाब में स्नान करते हैं।
स्नान के बाद घर लौटकर सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं, जिसमें मुख्यतः चावल, चने की दाल और लौकी की सब्जी शामिल होती है।
भोजन शुद्ध और पवित्रता के साथ बनाया जाता है, जिसमें लहसुन और प्याज का प्रयोग नहीं होता।
नहाय-खाय से खरना तक छठ पूजा की पूरी विधि की शुरुआत यहीं से होती है।
दूसरा दिन: खरना
इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला व्रत रखते हैं। शाम को सूर्य अस्त होने से ठीक पहले, व्रती नदी या तालाब में स्नान करते हैं।
घर आकर सूर्य देव की पूजा की जाती है और गुड़-चावल की खीर (रसियाव) तथा रोटी का प्रसाद बनाया जाता है।
यह प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रती का 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है।
इस दिन के बाद से व्रती कोई अन्न या जल ग्रहण नहीं करते।

तीसरा दिन: संध्या अर्घ्य (डूबते सूर्य को अर्घ्य)
यह छठ का सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है। इस दिन व्रती और उनका परिवार बांस की टोकरियों (दउरा) में फलों, ठेकुआ, कसार, ईख (गन्ना), मूली, नारियल, नींबू आदि विभिन्न प्रकार के प्रसाद सजाकर घाट पर जाते हैं।
शाम को, सूर्य अस्त होने से पहले, व्रती जल में खड़े होकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं। अर्घ्य में दूध और गंगाजल का प्रयोग होता है।
छठ पूजा में संध्या अर्घ्य और उषा अर्घ्य का महत्व इसी दिन से जुड़ा है।
छठ पूजा के लिए दउरा सजाने का तरीका – प्रसाद को कलात्मक तरीके से दउरा में सजाया जाता है।
चौथा दिन: उषा अर्घ्य (उगते सूर्य को अर्घ्य) और पारण
छठ के अंतिम दिन व्रती भोर में उठकर पुनः घाट पर पहुंचते हैं।
सूर्य उदय होने पर जल में खड़े होकर उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं।
अर्घ्य देने के बाद व्रती छठी मैया से परिवार की सुख-समृद्धि और मनोकामना पूर्ति की प्रार्थना करते हैं।
इसके बाद व्रती प्रसाद ग्रहण कर अपना व्रत तोड़ते हैं, जिसे पारण कहा जाता है।
छठी मैया की पूजा विधि और व्रत कथा का पाठ भी इस दौरान किया जाता है।
2025 में छठ पूजा का आयोजन: मुख्य तिथियां और अनुष्ठान
छठ पूजा 2024 का आयोजन पारंपरिक ढंग से ही किया जा रहा है। इस वर्ष की छठ पूजा का कार्यक्रम निम्नलिखित है:
अनुष्ठान | तिथि |
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नहाय खाय (Nahay Khaye) | शनिवार, 25 अक्टूबर 2025 |
खरना (Kharna) | रविवार, 26 अक्टूबर 2025 |
संध्या अर्घ्य (Sandhya Arghya) | सोमवार, 27 अक्टूबर 2025 |
उषा अर्घ्य (Usha Arghya) | मंगलवार, 28 अक्टूबर 2025 |
छठ पूजा के विशेष प्रसाद और उनकी विधि
छठ पूजा में प्रसाद का विशेष महत्व होता है, जिसे अत्यंत पवित्रता और स्वच्छता से बनाया जाता है:
ठेकुआ: यह छठ का सबसे प्रसिद्ध प्रसाद है। यह गेहूं के आटे, गुड़ और घी से बनता है और इसे डीप फ्राई किया जाता है। छठ पूजा का ठेकुआ बनाने की विधि बहुत सरल है लेकिन इसमें शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है।
कसार के लड्डू: भुने हुए चावल के आटे, गुड़ और घी से बने ये लड्डू भी अत्यंत शुभ माने जाते हैं।
गुड़ की खीर (रसियाव): खरना के दिन विशेष रूप से बनाई जाती है।
अन्य प्रसाद: केला, नारियल, गन्ना, नींबू, सुपारी, चावल, पान, मूली, सिंघाड़ा जैसे फल और सब्जियां विशेष रूप से चढ़ाई जाती हैं। यह प्रसाद की टोकरी देखकर ही स्पष्ट हो जाता है।
छठ पूजा में प्रसाद की सामग्री और महत्व: हर सामग्री का अपना प्रतीकात्मक महत्व है, जो प्रकृति और जीवन के विभिन्न पहलुओं का प्रतिनिधित्व करती है।
छठ पूजा के दौरान गाए जाने वाले पारंपरिक लोक गीत
छठ पूजा की पहचान उसके मधुर लोकगीतों से भी है। ये गीत महापर्व की भावना, छठी मैया की महिमा और व्रतियों की आस्था को दर्शाते हैं। ये गीत घाटों पर एक विशेष भक्तिमय वातावरण का निर्माण करते हैं, जैसे “कांच ही बांस के बहंगिया“, “मारबो रे सुगवा धनुष से“, “केलवा के पात पर” आदि। छठ पूजा के दौरान गाए जाने वाले लोक गीत इस पर्व का अविभाज्य अंग हैं।
निष्कर्ष: आस्था और शुद्धता का महापर्व
छठ पूजा सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक जीवनशैली है जो हमें प्रकृति से जुड़ना, शुद्धता का पालन करना और सामूहिक सद्भाव में जीना सिखाती है। यह पर्व कठिन तपस्या और अटूट विश्वास का प्रतीक है, जो हर साल लाखों लोगों को एक साथ लाता है और उन्हें आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है। इसकी अलौकिक छटा और गहरा महत्व इसे भारतीय संस्कृति के सबसे अनूठे और प्रेरणादायक त्योहारों में से एक बनाता है।
छठ पूजा से जुड़े अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
Q1: छठ पूजा में डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य क्यों दिया जाता है?
A1: डूबते सूर्य को अर्घ्य देना इस बात का प्रतीक है कि जीवन में हर चरण का सम्मान करना चाहिए, जबकि उगते सूर्य को अर्घ्य देना नए आरंभ और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है।
Q2: क्या पुरुष भी छठ का व्रत रख सकते हैं?
A2: हाँ, छठ का व्रत महिलाएं और पुरुष दोनों रख सकते हैं। कई पुरुष भी अपनी मनोकामना पूर्ति और परिवार के कल्याण के लिए इस कठोर व्रत का पालन करते हैं।
Q3: छठी मैया कौन हैं?
A3: छठी मैया (देवी षष्ठी) को ब्रह्मा जी की मानस पुत्री और संतान की देवी माना जाता है, जो बच्चों के स्वास्थ्य और दीर्घायु की रक्षा करती हैं।
Q4: छठ पूजा में गंगा स्नान का क्या महत्व है?
A4: छठ पूजा में पवित्र नदियों में स्नान, विशेषकर गंगा स्नान, अत्यंत शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इससे शारीरिक और मानसिक शुद्धता प्राप्त होती है और पापों का नाश होता है।
Q5: छठ पूजा में दान का क्या महत्व है?
A5: छठ पूजा के दौरान गरीबों और जरूरतमंदों को फल, अनाज और वस्त्र दान करना बहुत शुभ माना जाता है, जिससे पुण्य की प्राप्ति होती है।
छठ पूजा के आध्यात्मिक अनुभव को महसूस करें! क्या आप भी इस महापर्व के महत्व और परंपराओं को गहराई से जानना चाहते हैं? इस ब्लॉग पोस्ट को पढ़कर अपनी जानकारी बढ़ाएं और इस पवित्र पर्व का हिस्सा बनें!
जय छठी मइया 🙏✨